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रविवार, 15 अगस्त 2010

जश्न ए आज़ादी










जश्न ए आज़ादी के मौक़े पे जलाएं वो चराग़
जो जहालत के अंधेरों को मिटा देते हैं

इसी अज़्म के साथ एक ग़ज़ल ले कर हाज़िर हुई हूं ,आप सब के तब्सेरे मेरे हौसलों को ज़िया देते हैं ,लिहाज़ा मुझे उन तब्सेरों (जिन में तन्क़ीद भी शामिल हो) का इंतेज़ार रहेगा

ग़ज़ल
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खुश्बू ए गुल भी आज है अपने चमन से दूर
दरिया में चांद उतरा है चर्ख़ ए  कुहन से दूर 

मेरा वजूद ऐसे बियाबां में खो गया
ग़ुरबत में जैसे कोई मुसाफ़िर वतन से दूर

थीं शफ़क़तें जहान की अपनों के दरमियां
मैं ख़ाली हाथ रह गया आ कर वतन से दूर 

मां की दुआएं बाप का साया हो गर नसीब
हो ज़िंदगी बलाओं से ,रंज ओ मेहन से दूर

मुझ को ज़रूरियात ने आवाज़ दी बहुत
लेकिन न जा सका कभी गंग ओ जमन से दूर

तू दोस्ती के वास्ते जां भी निसार कर
रहना मगर बख़ील से, वादा शिकन से दूर 

दरिया के पास आ के भी प्यासा पलट गया
पानी नहीं था क़ब्ज़ ए तश्ना दहन से दूर

कोशिश ये थी शिकस्ता दिलों को संभाल ले
लेकिन ’शेफ़ा’ ही रह न सकी इस चुभन से दूर

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चर्ख़े कुहन =आसमान ; वजूद = अस्तित्व ; बियाबां = जंगल ; शफ़्क़त = स्नेह ; रंज ओ मेहन = दुख दर्द
निसार = बलिदान ; बख़ील = छोटे दिल वाला ; वादा शिकन = वादा तोड़ने वाला ; तश्ना दहन = प्यासा
शिकस्ता = टूटे हुए 


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क्षमा 
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एक बात कहनी थी आप सब से, मेरी पिछली ग़ज़ल (................अपने छूट जाते हैं) से 
मेरी ही ग़लती की वजह से कुछ टिप्पणियां डिलीट हो गई हैं , जिन टिप्प्णीकारों की 
टिप्पणियां  डिलीट हुई हैं ,कृप्या मुझे क्षमा करें ,
ऐसा जान बूझ कर बिल्कुल नहीं किया गया ,इसे आप मेरी अज्ञानता का नाम दे सकते हैं 
दर अस्ल मेरा कर्सर ग़लती से डिलीट पर क्लिक हो गया ,
आशा है आप मुझे इस ग़लती के लिये क्षमा करेंगे 
धन्यवाद