मेरे ब्लॉग परिवार के सदस्य

बुधवार, 23 मई 2012

२ माह के वक़फ़े के बाद एक ग़ज़ल हाज़िर ए ख़िदमत है  
आप सब के क़ीमती मश्वरों का इंतेज़ार रहेगा 
शुक्रिया

......हमनवा नहीं होता 
________________________

वो जो मुझ से ख़फ़ा नहीं होता
दर्द हद से सिवा नहीं होता
*****
हमज़बाँ तो बहुत मिले लेकिन
क्यों कोई हमनवा नहीं होता
*****
आग बस्ती की वो बुझाता तो
उस का घर भी जला नहीं होता
*****
कोई कोशिश कभी तो की होती
तुम से कुछ भी छिपा नहीं होता
*****
जाग जाते अगर ज़रा पहले
सानेहा ये हुआ नहीं होता
*****
फ़िक्र रोटी की जो नहीं होती
कोई अपना जुदा नहीं होता
*****
तुम मसीहाई को जो आ जाते
ख़ौफ़ मुझ को ’शेफ़ा’ नहीं होता
********************************
सिवा= ज़्यादा ; सानेहा= दुर्घटना