आज एक नज़्म के साथ हाज़िर हूँ शायद पसंद आए
" यही सदियों तलक होगा "
__________________________
यही सदियों से होता है
यही सदियों तलक होगा
कि परवाना तड़पता है
शमा का दिल भी जलता है
ये इतना प्यार करती है
उसे दिल में बसाती है
मगर ये जानती भी है
मगर ये जानती भी है
अगर वो पास आएगा
तो उस कि जान जाएगी
इसी ग़म में वो घुलती है
इसी कोशिश में रहती है
इसी कोशिश में रहती है
मेरा परवाना बच जाए
भले वो पास न आए
मैं उस को देख तो पाऊं
तराने प्यार के गाऊं
मगर परवाने को देखो
अब उस को भी ज़रा समझो
शमा के गिर्द रहता है
और अपना सर पटकता है
नहीं मंज़ूर है उस को
जुदाई का कोई लम्हा
इसी उम्मीद में हर दम
शमा के गिर्द फिरता है
कभी तो वो बुलाएगी
कभी तो लबकुशा होगी
तो उस के पास जाएगा
और उस के अश्क पोछेगा
मगर जब ख़ामुशी से
मगर जब ख़ामुशी से
शमा बस जलती पिघलती है
तो फिर बेचैन परवाना
तो फिर बेचैन परवाना
शमा की सम्त बढ़ता है
और उस के प्यार की ख़ातिर
और उस के प्यार की ख़ातिर
वो जाँ अपनी गंवाता है
शमा भी मुज़्तरिब हो कर
शमा भी मुज़्तरिब हो कर
तड़पती है ,मचलती है
जलाती है वो दिल को
जलाती है वो दिल को
और फिर इस ग़म में घुलती है
जनाज़े पर वो परवाने के
जनाज़े पर वो परवाने के
जाँ अपनी भी खोती है
यही सदियों से होता है
यही सदियों से होता है
यही सदियों तलक होगा
__________________________
लबकुशा= बोलना /कहना ; सम्त=ओर ; जनाज़ा= शव
__________________________
लबकुशा= बोलना /कहना ; सम्त=ओर ; जनाज़ा= शव