मेरे ब्लॉग परिवार के सदस्य

मंगलवार, 21 अगस्त 2012

ग़ज़ल

पंकज जी के ब्लॉग पर पोस्ट की गई एक पुरानी ग़ज़ल पेश ए ख़िदमत है 

..........अभी तक गाँव में 
________________________

गोरियाँ पनघट पे जाती हैं, अभी तक गाँव में 
प्रीत की राहों के राही हैं, अभी तक गाँव में
*****
पायलों से सुर मिलाती वो खनकती चूड़ियाँ
लोक धुन पर गुनगुनाती हैं, अभी तक गाँव में
*****
पक्षियों की चहचहाहट ,सुब्ह की ठंडी हवा
चुनरियाँ खेतों की धानी हैं, अभी तक गाँव में 
*****
झोपड़ी, खलिहान, पनघट, बाग़ में बिखरे हुए
याद के कुछ फूल बासी हैं, अभी तक गाँव में 
*****
छोड़ आए थे जिन्हें तुम गाँव के बरगद तले
झील सी आँखें वो प्यासी हैं, अभी तक गाँव में 
*****
क्या बुज़ुर्गों का है दर्जा? मान क्या सम्मान क्या?
माँएं बच्चों को सिखाती हैं, अभी तक गाँव में 
*****
भूल कर भी अपनी मिट्टी को न भूलेगी ’शेफ़ा’
कुछ जड़ें गहरी समाई हैं, अभी तक गाँव में 
******************************************
****************************** 
*****************